Monday, April 13, 2009

latest information/news by ashok Hindocha(M-9426201999)

छोटे दुःख को मिटाने की एक ही तरकीब है : बड़ा दुःख। फिर छोटे दुःख का पता नहीं चलता। इसीलिए तो लोग दुःख खोजते हैं; एक दुःख को भूलने के लिए और बड़ा दुःख खड़ा कर लेते हैं। बड़े दुःख के कारण छोटे दुःख का पता नहीं चलता। फिर दुःखों का अंबार लगाते जाते हैं। ऐसे ही तो तुमने अनंत जन्मों में अनंत दुःख इकट्ठे किए हैं। क्योंकि तुम एक ही तरकीब जानते हो : अगर कांटे का दर्द भुलाना हो तो और बड़ा कांटा लगा लो; घर में परेशानी हो, दुकान की परेशानी खड़ी कर लो—घर की परेशानी भूल जाती है; दुकान में परेशानी हो, चुनाव में खड़े हो जाओ—दुकान की परेशानी भूल जाती है। बड़ी परेशानी खड़ी करते जाओ। ऐसे आदमी नर्क को निर्मित करता है। क्योंकि एक ही उपाय दिखाई पड़ता है यहां कि छोटा दुःख भूल जाता है, अगर बड़ा दुःख हो जाएगा।




मकान में आग लगी हो, पैर में लगा काँटा पता नहीं चलता। क्यों ? कांटा गड़े तो पता चलना चाहिए। हॉकी के मैदान पर युवक खेल रहे हैं, पैर में चोट लग जाती है, खून की धारा बहती है—पता नहीं चलता। खेल बंद हुआ, रेफरी की सीटी बजी—एकदम पता चलता है। अब मन वापस लौट आया; दृष्टि आ गई।




तो ध्यान रखना, तुम्हारी आंख और आंख के पीछे तुम्हारी देखने की क्षमता अलग चीजें हैं। आंख तो खिड़की है, जिसमें खड़े होकर तुम देखते हो। आंख नहीं देखती; देखनेवाला आंख पर खड़े होकर देखता है। जिस दिन तुम्हें यह समझ में आ जाएगा कि देखनेवाला और आंख अलग है; सुननेवाला और और कान अलग है; उस दिन कान को छोड़कर सुनने वाला भीतर जा सकता है; आंख को छोड़कर देखने वाला भीतर जा सकता है—इंद्रिय बाहर पड़ी रह जाती है। इंद्रिय की कोई जरूरत भी नहीं है।



जागने पर जैसे स्वप्न अवास्तविक हो जाता है, वैसे ही स्व-बोध पर दुख खो जाता है।आनंद सत्य है, क्योंकि वह स्व है।

© OSHO International Foundation।



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at 5:14 AM
मोबाईल फ़ोन
आप नया मोबाईल फ़ोन खरीद नेकी सोच रहे हे और वो भी बिना कंपनी का ( चाईना ) का तो उसे खरीद ने से पहेले एक बार उसका सीरियल नंबर यानि की ( IMEI : No ) जरुर देखे
आप ( *#06# ) नंबर डायल करे serial on आए तभी उसे खरीद ने की सोचे
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at 4:19 AM
Wednesday, 8 April, 2009
विचारक मुल्ला नसरुद्दीन
मुल्ला नसरुद्दीन के बेटे ने उससे पूछा : पापा, मेरे मास्टर कहते हैं कि दुनिया गोल है। लेकिन मुझे तो चपटी दिखाई पडती है। और डब्बू जी का लडका कहता है कि न तो गोल है , न चपटी , जमीन चौकोर है।


पापा ,आप तो बडे विचारक हैं , आप क्या कहते हैं ?




मुल्ला नसरुद्दीन ने आंखे बन्द की और विचारक बनने का ढोंग करने लगा। कुछ देर यूँ ही बैठा ही रहा, हाँलाकि उसके समझ मे कुछ नहीं आया ,सब बातें सिर से घूमती रहीं कि आज कौन सी फ़िल्म देखने जाऊं, क्या करुं क्या न करूं। बेटे ने कहा : पापा, बहुत देर हो गयी , अब तक आप पता नही लगा पाये कि दुनिया गोल है , चपटी या फ़िर चौकोर?मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा : बेटा , न तो दुनिया गोल है न चपटी न चौकोर। दुनिया चार सौ बीस है।
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at 7:13 AM
जागरूकता






राजा ने राजकुमार को तलवार बाजी सिखाने केलिए एक गुरु के पास भेजा वो गुरु भी अजिब था दरवाजे पर लिखा था की वह जागरूकता सिखाता हे । तो राजकुमार ने सोचा की केसा गुरु मिला हे जो जागरूकता सिखाता हे । में तो यहाँ तलवार बाजी सिखाने आया हु । दो तीन दिन बीत गए तो राजकुमार ने गुरु से पूछा कब आप तलवार बाजी सिखाना शुरु करोगे । गुरुने कहा की जल्दी मत कर ना । एक सप्ताह केबाद अचानक एक दिन लकडी की तलवार गुरु ने से पीछे से वार किया । और कहा के आज से शिक्षा शुरु अब तैयार रहेना । राजकुमार कूछ समज नहीं पाया.
अब रोज हमला होने लगा राजकुमार को गुरु पागल मालूम पड़ने लगा वो सोचने लगा के में यहाँ पे तलवार बाजी सिखाने आया पर ये क्या कर रहा हे . अब वो दिन में थोडा संभल कर रहे ने लगा नजाने वो पागल कब आजाये । उसकी सारी चेतना हमले से बचे ने लगी
तिन महीने हो गए अब वो कोय भी हमला करे तो वो रोक लेता तो गुरु ने कहा अब रात में भी तेयार रहेना फिर से रात में मार पड़ने लगी धीरे धीरे रात कोभी बोध रहेने लगा नीद में भी रक्षा होने लगी अब तो गुरु के पैरो की आवाज तक सुनाय देने लगी
छे महीने समाप्ते हुए राजकुमार ने सोचा की रोज गुरु मुजपे हमला करता हे तो में
क्यूना उसपे हमला करू .........
तभी गुरुने कहा के मुझ पे हमला मत कर ना राजकुमार को बड़ा आश्चर्य हुआ के मैने तो अभी सिर्फ सोचा था और आपको केसे पता चल गया गुरुने कहा थोड़े महीने तू ठहेर तुभी विचार पढ़ने लगेगा एक सालबाद जब राजकुमार की विदाय का दिन था और तलवार बाजी का मुकाबला था तब राजकुमार में कहा के आप ने कभी मुझे तलवार बाजी शिखाए नहीं में केसे .....गुरु ने कहा सब विद्या का मूल हे जागरूकता जब हिरा हाथमे हो तो फिर कंकड़ पत्थर का क्या काम ।


फ़िर मुकाबले में पहेली बार राजकुमार ने तलवार हाथमे ली और में वो जित गया
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at 3:58 AM
Thursday, 2 April, 2009
आप भी अपना ब्लॉग बनाये
friends
आप भी आपना ब्लॉग बनाये
और google ad से पैसे कमाये ज्यादा जानकारी के लिए
मुझे maile करे ब्लॉग में हिन्दी font की सुविधा हे
raju_1569@yahoo.com

आप को ये ब्लॉग केसा लगा ............pl जरुर बताए

सजेसन होतो जरुर बताये
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at 10:19 AM
Best Business In World
इस बिजनेस की नीव हे डर ओर लालच

1…...आप जहा पे रहे ते हो वहा आस पास खाली जगह चुनो. पैसे देके जगह कभी न खरी दे
( सरकारी हो तो सब से अच्छा )
2…...फिर वहा भजन, कीर्तन , भोजन , कथा ,सब चालू करो
3…...धीरेधीरे पब्लिसीटी बढ़ाओ और रोज भोजन प्रसाद चालू करो
( क्यों की मन का रास्ता पेट से हो कर जाता हे )
किसी का मन जित ना हे तो उसे भोजन खिलावो साथ में दान पेटी रखो
4…... फिर सब भक्तजन ( हमारे ग्राहक ) आना सुरु होंगे
( क्यों की घर पर तो टाइम जाता नहीं टाइम पास के लिए आना जाना शुरु होंगे )
5…...फिर उस खाली जगह में सब को आगे कर के ( आप को पीछे रहे ना हे )
छोटा सा मंदिर बनाओ ( कोय भी देवी देवता का , अरे यार ३३ करोड़ मेसे कोय भी )
जिसे लोग डरे ओर लालच भी रहे क्यों के आप के बिजनेस की नीव हे डर ओर लालच

डर के बारे में थोडा जाने

आज मंदिर नहीं जाऊगा तो ये हो जायेगा , वो हो जायेगा देवी , देवता से डर ना चाहीये
मोत के बाद नर्क में जाना पड़ेगा तो अभी से थोडा दान कर ना जरुरी हे ( रिश्वत ऊपर भी चलती हें )
अपने ही धर्म में जीना दुसरे धर्म में जाना पाप हे ( कही अपना कस्टमर दूसरी जगह चला न जाये )
डरा ने के फिर बहोत सारे उपाय हें ( आप भी सोचो )

अब लालच के बारे थोडा जाने

मोत के बाद स्वर्ग मिलेगा जो दान पुण्य नहीं कर ते वो नर्क में जाये गे
ये सभी (सोफ्टवेर ) धर्मं वाले अलग अलग शब्दों में कहेते हे मगर सब का
मतलब एक ही होता हे
जीते जी आप को कोय आनंद नहीं करना हे सन्यासी की तरह जींदगी जियो
दान कर ते रहो तभी स्वर्ग मिले गा वरना नर्क में जाना पड़े गा
6…...अब डर में दो बाते हे जिसमे जिसका सोफ्टवेर डाला हे वाही वाला डरेगा वर्ना आप उसे
डरा नहीं पाएगे

दुनिया में कितने ही सोफ्टवेर हे पर सबसे ज्यादा चार सोफ्टवेर ज्यादा चल ते हे
जीसस हिन्दु इस्लाम बोध्धा

7…...जब बच्च पैदा होता हे तो उस में धीरे धीरे एक सोफ्टवेर डाला जाता हे
फिर जिंदगी भर उसे डरता हे
8…...जेसे आप कोय जीसस के सॉफ्टवर वाले को हिन्दु के सॉफ्टवर से नहीं डरा सकते
या इस्लाम के सोफ्टवेर वाले को हिन्दु ( शनि के साडेसाती से नहीं डरा सक ते )
अल्लाह से डराया जा सकता हे

पुरे साल में 150 सभी ज्याद त्यौहार आते हे

सभी मनाओ बाकि दिनों में भजन ,कीर्तन ,कथा ,सत्संग, शादी की विधि सब चलता रहे गा
10 फिर एक साल के बाद बड़े मंदिर के लिए डोनेसन जमा करो उस में भी डर और लालच का
उपयोग करो के आप को स्वर्ग में वो मिले गा , वर ना नर्क में जाना पड़ेग
11 तक मंदिर बने तब तक सब हरी भक्त सेवा लो ताकि उसे लगे के मंदिर हम ने बनाया हे
उसे बोलो आब आगे बढो हम आप के पीछे हे
12 एक डरे हुए लोगो का ट्रस्ट बनाओ जिसमे उनलोगों की उम्र 60 , 70 वाले ही हो
ताकि वो जल्द ही स्वर्ग में जाए और आप के हाथ में संचालन रहे

लो हो गया आप का कारोबार , अब आप की ब्रांच शुरु करो
एक शहर मेसे दुसरे शहर , लगेराहो मुना भाई
आप को यकींन नहीं आ रहा ......? तो देखो दुनिया का हाल
सबसे ज्यादा मंदिर ( दुकान ) किस की हे पता हे .......?

1…...जीसस ( चर्च ) दो लाख से ज्यादा ( पूरी दुनिया में )
2…... इस्लाम ( मस्जिद ) पचास हजार से ज्यादा
3…...बोध्धा ( मठ ) एक लाख से ज्यादा ( पूरी दुनिया में )
4…...हिन्दू ( मंदिर ) एक लाख से ज्यादा ( पूरी दुनिया में )

दुनिया की इन लाखो दुकानों में कोन सी प्रोडक्ट बिकती हे पता हे …………...अद्रश्य चीजे बिकती हे जो कभी दिखे नहीं देती [ invisible sell ]

जेसे परमात्मा , आस्था , करुना , प्रेम , दया , अहिंसा ओरभी बहोत कुछ भी पर वो अद्रश्य होनी चाही ये

ज्यादातर दुकानों में स्टोक नहीं होता फिर भी बिकती हे क्योकि ये अद्रश्य हे
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at 6:08 AM
Wednesday, 1 April, 2009
किसी भी बात को कहानी से बताये
एक ९० साल बुजुर्ग डाक्टर से : डा. सा. मेरी १८ साल की पत्नी गर्भवती हो गयी है , आप की राय जानना चाहूगाँ ।
डाक्टर : मै आपको एक कहानी सुनाता हूँ , " एक शिकारी ने हडबडी मे घर से निकलते समय बन्दूक की जगह छाता साथ मे रख लिया , जंगल मे अचानक उसका सामना शेर से हो गया , उसने छाते का हत्था खोला और शेर की ओर निशाना साधते हुये ट्रिगर दबाया ,धाँय !!
और शेर मर गया !!! "
"यह हो ही नही सकता । किसी और ने निशाना लगाया होगा ।"
डाक्टर : बिल्कुल यही तो मै कहना चाहता हूँ :) :)
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at 6:07 AM
अभय



बाहर की संपत्ति जितनी बढ़ती है, उतना ही भय बढ़ता जाता है- जब कि लोग भय को मिटाने को ही बाहर की संपत्ति के पीछे दौड़ते हैं! काश! उन्हें ज्ञात हो सके कि एक और संपदा भी है, जो कि प्रत्येक के भीतर है। और, जो उसे जान लेता है, वह अभय हो जाता है।
अमावस की संध्या थी। सूर्य पश्चिम में ढल रहा था आर शीघ्र ही रात्रि का अंधकार उतर आने को था। एक वृद्ध संन्यासी अपने युवा शिष्य के साथ वन से निकलते थे। अंधेरे को उतरते देख उन्होंने युवक से पूछा, ''रात्रि होने को है, बीहड़ वन है। आगे मार्ग में कोई भय तो नहीं है?''
इस प्रश्न को सुन युवा संन्यासी बहुत हैरान हुआ। संन्यासी को भय कैसा? भय बाहर तो होता नहीं, उसकी जड़े तो निश्चय ही कहीं भीतर होती हैं!
संध्या ढले, वृद्ध संन्यासी ने अपना झोला युवक को दिया और वे शौच को चले गये। झोला देते समय भी वे चिंतित और भयभीत मालूम हो रहे थे। उनके जाते ही युवक ने झोला देखा, तो उसमें एक सोने की ईट थी! उसकी समस्या समाप्त हो गयी। उसे भय का कारण मिल गया था। वृद्ध ने आते ही शीघ्र झोला अपने हाथ में ले लिया और उन्होंने पुन: यात्रा आरंभ कर दी। रात्रि जब और सघन हो गई और निर्जन वन-पथ पर अंधकार ही अंधकार शेष रह गया, तो वृद्ध ने पुन: वही प्रश्न पूछा। उसे सुनकर युवक हंसने लगा और बोला, ''आप अब निर्भय हो जावें। हम भय के बाहर हो गये हैं।'' वृद्ध ने साश्चर्य युवक को देखा और कहा, ''अभी वन कहां समाप्त हुआ है?'' युवक ने कहा, ''वन तो नहीं भय समाप्त हो गया है। उसे मैं पीछे कुएं मैं फेंक आया हूं।'' यह सुन वृद्ध ने घबराकर अपना झोला देखा। वहां तो सोने की जगह पत्थर की ईट रखी थी। एक क्षण को तो उसे अपने हृदय की गति ही बंद होती प्रतीत हुई। लेकिन, दूसरे ही क्षण वह जाग गया और वह अमावस की रात्रि उसके लिए पूर्णिमा की रात्रि बन गयी। आंखों में आ गए इस आलोक से आनंदित हो, वह नाचने लगा। एक अद्भुत सत्य का उसे दर्शन हो गया था। उस रात्रि फिर वे उसी वन में सो गये थे। लेकिन, अब वहां न तो अंधकार था, न ही भय था!
संपत्ति और संपत्ति में भेद है। वह संपत्ति जो बाह्य संग्रह से उपलब्ध होती है, वस्तुत: संपत्ति नहीं है, अच्छा हो कि उसे विपत्ति ही कहें! वास्तविक संपत्ति तो स्वयं को उघाड़ने से ही प्राप्त होती है। जिससे भय आवे, वह विपत्ति है- और जिससे अभय, उसे ही मैं संपत्ति कहता हूं।
आप भी देखे आप के झोले में भी तो कही ...................
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at 3:14 AM
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परमात्मा हें अद्रश्य
अब अद्रश्य के साथ आप कुछ भी कर सकते हो
उसे बेच भीं सकते हो

अमेरिका में एक दुकान पर अद्रश्य हेरपिन बिकते थे अद्रश्य !
तो स्त्रीया तो बड़ी उत्सुक होती हे अद्रश्य हेर पिन !
दिखाय भी न पड़े और बालो में लगा भी रहे ,
बड़ी भीड़ लगती थी , कतारे लगती थी
एक दिन एक ओरत पहुची ,उसने डब्बा खोलकर देखा ,
उसमे कुछ था तो नहीं
उसने कहा इसमे हें भी ?
थोडा संदेह उसे उठा ,
उसने कहा के अद्रश्य !
माना कि अद्रश्य हे उनको ही लेने आए हु ,
लेकिन पक्का इसमे हे ,
और ये किसी को दिखाय भी नहीं पड़ता
उस दुकानदार ने कहा
कि तू मान न मान , आज महीने भर से तो स्टोक में नहीं हे
फिर भी बिक रहा हे ,
पंडित पुरोहित नहीं बता ते
अब ये अद्रश्य हेर पिन की कोय स्टोक में होने की जरुरत थोड़े ही हें


परमात्मा का
धंधा कुछ अद्रश्य का हें ,
कोई और तरह कि दुकान खोलो तो सामान बेचना पड़ता हें ,
कोय और तरह का धंधा
कितना ही धोखा दो , कितना ही कुशलता से दो
पकडे जाओगे लेकिन परमात्मा बेचो ,

कोन पकडेगा ? केसे पकडेगा ?

सदिया बीत जाती हें बिना स्टोक के बिकता हें





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