Saturday, May 2, 2009

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HINDI-NEWS-KAHANI"s
प्रस्तुतकर्ता Raju on Thursday, April 30, 2009



सिकंदर मरा जिस् नगर से उसकी अर्थी निकाली गई । वहा के लोगो ने देखा की अर्थी मे से सिकंदर के हाथ बाहर रखे गये थे । सबने पुछा तो पता चला की सिकंदर ने मरनेसे पहेले कहा था मेरे हाथ बाहर रखना ताकि लोगो को पता चले के में भी खली हाथ जा रहा हु ।



क्या कोइ एसी संपदा नहीं हे जिसे मृत्यु मिटा न सके


किसी भी सम्पदा को मृत्यु की कसोटी पर रखना और देखना ये सोना हे या मिटी


जो मृत्यु के बाद बचता हे वो तुम हो

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में कोन हु प्रस्तुतकर्ता Raju on Tuesday, April 28, 2009

ओस्पेन्सकी ने गुरजिएफ से मिलनेसे पहेले एक बहोत कीमती किताब " टशियम आरगेनम " लिख चुकाथा पश्चिम के ईतीहास में लिखी गयी तीन किताबो में एक महत्वपुणँ किताब हे । और गुरजिएफ को कोय जानता भी नहीं था एक अनजान फ़कीर था जब ओस्पेन्सकी मिलने गया गुरजिएफ से कोय बीस मित्रो के साथ चुपचाप बेठा हुआ था । ओस्पेन्सकी भी थोडी देर बेठा फिर घबडाया न तो किसी ने परिचय कराया की कोन हे न गुरजिएफ ने पुछा की केसे आये हो बाकि जो बीस लोग थे वह भी चुपचाप बैठे थे तो चुपचाप ही बैठे रहे । पाच सात मिनिट के बाद ओस्पेन्सकी बेचनी बहोत बढ़ गयी । न वहा से उठा सके न बोल सके आखिर हिम्मत जुटाकर उसने कोई बीस मिनिट तक तो बर्दास्त किया , फिर उसने गुरजिएफ से कहा की माफ़ करिये यह क्या हो रहा हे ? आप मुझसे यह भी नहीं पूछते की में कोन हु ?


गुरजिएफ ने आंखे उठा कर ओस्पेन्सकी की तरफ देखा और कहा , तुमने खुद कभी अपने से पुछा हे की में कोन हु और तुम ने ही नहीं पूछा , तो मुझे क्यों कष्ट देते हो ? या तुम्हे अगर पता हो की तुम कोन हो तो बोलो । तो ओस्पेन्सकी के निचे से जमीन खिसकती मालूम पड़ी अब तक तो सोचा था की पता हे की में कोन हु ओस्पेन्सकी ने सब तरह से सोचा कही कुछ पता न चला की में कोन हु ? ।




गुरजिएफ ने कहा बेचनी में मत पडो कुछ और जानते होतो उस संबंध में ही कहो । कुछ नहीं सूझा तो गुरजिएफ ने एक कागज उठाकर दिया और कहा . हो सकता हे संकोच होता हो पास के कमरे में चले जाओ इस कागज पर लिख लाओ जो -जो जानते हो उस संबंध में फिर हम बात न करेगे और जो नहीं जानते हो उस संबंध में कुछ बाते करेगे ओस्पेन्सकी कमरे में गया उसने लिख हे सर्द रात थी लेकिन पसीना मेरे माथे से बहना शुरू हो गया पहेली दफा में पसीने - पसीने हो गया पहेली दफा मुझे पता चला की जानता तो में कुछ भी नहीं हु . सब शब्द मेरी आंखो में धूम ने लगे और मेरे ही शब्द मुझसे कहेने लगे







ओस्पेन्सकी तुम जानते क्या हो .......







और तब इसने वह कोरा कागज ही लाकर गुरजिएफ के चरणो में रखा दिया और कहा में कुछ नहीं जानता गुरजिएफ ने कहा अब तू जान ने की और कदम उठा सकता हे ।





आप क्या जानते हे ..... ?



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हमारी पकड़ प्रस्तुतकर्ता Raju on Monday, April 27, 2009
अंधेरी रात में एक आदमी एक पहाड़ के कगार से गिर गया । अंधेरा था भयानक नीचे खाय थी बड़ी । किसी व्रुक्ष की जड़ो को पकड़ कर लटका रहा । चिल्लाया , चीखा , रोया । अंधकार धना था दूर-दूर तक कोई भी न था । सर्द रात थी कोय उपाय नहीं सुझता था व्रुक्ष की जड़े हाथो से छुटती मालूम पड़ती थी हाथ ठंडे होने लगे , बर्फीले होने लगे रात गहेराने लगी वह आदमी चीखता चिल्लाता हे व्रुक्ष की जड़ो को पकडे हे सारी ताकत लगा रहा हे ठीक उसकी हालत वेसी थी जेसी हमारी हे पकडे हे धन को पद को जोर से पकडे हुए हे की छुट न जाये कुछ ।
लेकिन कब तक पकडे रहेता आखिर पकड़ भी तो थक जाती हे । और मजा तो ये हे की जितना जोर से पकडो उतने जल्दी थक जाते हे जोर से पकडा था , उंगुलियों ने जवाब देना शुरु कर दिया धीरे धीरे आंखो के सामने हाथ खिसक ने लगे । लेकिन कब तक पकडे रहेता आखिर पकड़ भी तो थक जाती हे । और मजा तो ये हे की जितना जोर से पकडो उतने जल्दी थक जाते हे जोर से पकडा था , उंगुलियों ने जवाब देना शुरु कर दिया धीरे धीरे आंखो के सामने हाथ खिसक ने लगे जड़े हाथ से छुटने लगी चिल्लाया रोया लेकिन कोय उपाय नहीं रहा आखिर हाथो से जड़े छूट गयी ।
लेकिन तब उस घाटी में हंसी की आवाज गूंज उठी क्योकि नीचे कोय खाय नहीं थी जमीन थी अंधेर में दिखाय नहीं पड़ती थी वह नाहक ही परेसान हो रहा था और इतनी देर जो कष्ट उठाया वो अपनी पकड़ के कारण ही उठाया वह घाटी तो चीख पुकार से गूंज रही थी हंसी की आवाज से गूंज उठी वह आदमी अपने पर हंस रहा था ।
जिन लोगो ने पकड़ के पागलपन को छोड़ कर देखा हे वे हँसे हे क्योकि जिस से वो भयभीत हो रहे थे वह हे ही नहीं । जिस म्रृत्यु से भय भीत हम हो रहे हे वह हमारी पकड़ के कारण ही प्रतीत होता हे ।
पकड़ छुटते ही वह नहीं हे । जिस दुख से हम भयभीत हो रहे हे वह दुख हमारी पकड़ का हिस्सा हे ।
पकड़ से पैदा होता हे पकड़ छुटते ही खो जाता हे । और जिस् अंधेंरें में हम पता नहीं लगा पा रहे हे
की कहा खड़े होंगे वही हमारी अंतरात्मा हे । सब पकड़ छुटते हे हम अपने में ही प्रतिष्ठित हो जाते हे




आपने भी तो कूछ पकडा हुआ नहीं हे ना..... छोड़ दो उसे फिर हँसी आयेगी ।

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उपवास प्रस्तुतकर्ता Raju on Sunday, April 26, 2009




आज एक दोस्त के घर जाना हुआ दोस्त बहार गया था तो उसके इंतजार में उसके
दादाजी के पास बेठा बातो बातो में उसके दादाजी ने कहा की आप उपवास रखते हो मेने सोचा क्या बोलू हा या ना मगर मेरे कूछ बोलने से पहेले ही उसने कहा आज कल के लड़के कुछ भक्ति वाला काम नहीं करते वेसे भी मेरी ईमेज नास्तिको वाली हे अब दादाजी से में नहीं पुछ सका की आप उपवास का मतलब समज ते हे ।
मगर आप से जरुर पुछु गा की आप उपवास का मतलब समजते हे
उपवास का अर्थ होता हे अपने पास होना अपनी आत्मा के पास होना इसलिए जो व्यक्ति अपने पास होता हे उसे भूख कम लगती हे अपने पास होना याने आनंद में होना शरीर के पास होना याने दुख में हो ना दुखी आदमी अपने को भर ने की चेष्टा करता हे तो वह भोजन से भरेगा जब आनंद से भर जाओगे तो भूख का पता भी नहीं लगता याद भी नहीं आती बच्चे अक्सर खेलने में अपने पास होते हे उसे भोजन की याद भी नहीं आता

चित्रकर ईतना डूब जाता हे अपने चित्र में उसे भोजन की याद तक नहीं आती , संगीतकर डूब ता हे संगीत में , सायंटिस्ट डूब ता हे अपने प्रयोग में बुद्ध, महावीर , जीसस , महम्मद पैगम्बर , नानक , कबीर ,कृष्ण सबने पा लिया आपने आप को उतर गए उपवास में अपनी आत्मा के पास

मगर हमने उपवास का अलग मतलब ही नीकाल लिया हे
पंडित , पुरोहित , मोलवी , चर्च के फ़ाधर ने अपनी दुकान चलाने के रास्ते निकाले हे शायद
वो भी बेचारे क्या करे वो हे लकीर के फ़कीर उसे खुद भी पता नहीं वो क्या कह रहे हे
उपवास करना नहीं होता वो तो होता हे अपने आप
ब्लॉग में कभी मेरा भी उपवास हो जाता हे




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आज के हालात प्रस्तुतकर्ता Raju on Friday, April 24, 2009
नदी में डूबते हुए आदमी ने पुल पर चलते हुए आदमी को आवाज़ लगायी "बचाओ बचाओ" पुल पर चलते आदमी ने निचे रस्सी फेकी और कहा आओ नदी में डूबता हुआ आदमी रस्सी नहीं पकड़ पा रहा था रो रो कर चिल्ला रहा था में मरना नहीं चाहता ज़िंदगी बड़ी मेहेंगी है कल ही तो मेरी एक कंपनी में नौकरी लगी है .. इतना सुनते ही पूल बराबर चलते आदमी ने अपनी रस्सी खीच ली और भागते भागते वो कंपनी में गया उसने वहां बताया की अभी अभी एक आदमी डूबकर मर गया है और तरह आपकी कंपनी में एक है जगह खाली कर गया है ... में बेरोजगार हूँ मुझे ले लो .. रेसप्सनिस्ट बोली दोस्त तुमने देर कर दी, अब से कुछ देर पहले हमने एक आदमी को लगाया है जो उसे धक्का दे कर तुमसे पहले यहाँ आया है!

Story Post By Milan Patel
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